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शुक्रवार, 25 दिसंबर 2015

१९७. क़ानून

मैं नहीं मानता 
कि क़ानून अँधा होता है. 
क़ानून बनानेवाले जानते हैं 
कि किसके लिए 
कैसा क़ानून बनाना है,
लागू करनेवाले जानते हैं 
कि किसके मामले में 
कैसे लागू करना है,
व्याख्या करनेवाले जानते हैं 
कि किस व्यक्ति के लिए 
क़ानून का क्या अर्थ होता है.

जिसे क़ानून की ज़रूरत 
सबसे ज़्यादा होती है,
बस वही नहीं जानता 
कि क़ानून क्या होता है,
उसे लागू कौन करता है,
कैसे करता है,
कि उसकी व्याख्या भी होती है.

क़ानून अँधा नहीं होता,
दरअसल जिसे क़ानून की 
सबसे ज़्यादा ज़रूरत होती है,
वह अँधा होता है. 

शुक्रवार, 18 दिसंबर 2015

१९६. व्यस्त




मैं बहुत व्यस्त हूँ,
ज़िन्दगी भर रहा,
न औरों के लिए,
न अपनों के लिए,
यहाँ तक कि
ख़ुद के लिए भी 
वक़्त ही नहीं मिला .

अब हिसाब करता हूँ,
तो पाता हूँ कि
मेरी व्यस्तता 
किसी के काम नहीं आई.

तुम सब जो व्यस्त हो,
ज़रा साँस ले लो,
और सोच लो कि
तुम किसलिए व्यस्त हो.

कहीं ऐसा तो नहीं कि
तुम एक विशाल वृत्त की 
परिधि पर हो, 
दौड़ रहे हो,
हांफ रहे हो,
पर केंद्र से तुम्हारी दूरी 
उतनी ही बनी हुई है.

शुक्रवार, 11 दिसंबर 2015

१९५. मेरा शहर

आजकल मेरा शहर चर्चा में है.

हो रहे हैं रोज़ बलात्कार,
बढ़ती जा रही है 
नाबालिगों की तादाद 
अपराधियों में,
भरी बसों में भी है ख़तरा,
अपने घर भी नहीं कोई महफ़ूज़.

हर कोई लिए घूमता है 
चाकू-छुरियां, तमंचे,
छोटी-सी बात पर 
चल जाती हैं गोलियां.

पूरा हो जाता है कभी भी 
किसी का भी समय,
पार्किंग को लेकर,
पैसों को लेकर,
जाति,भाषा,धर्म -
किसी भी मुद्दे को लेकर.

आजकल मेरा शहर चर्चा में है,
परेशान और शर्मशार है वह,
मेरा शहर सोचता है 
कि काश ये गली-मोहल्ले छोड़कर 
वह किसी और शहर में रह पाता.

शनिवार, 5 दिसंबर 2015

१९४. प्यार


जो चकरी की तरह घूमे,
वह नई जवानी का आकर्षण है;
जो फुलझड़ी की तरह जले,
वह नूतन प्रेम का एहसास है;
जो अनार की तरह चले,
वह जवानी का उन्माद है;
जो बम की तरह फटे,
वह विरोध के ख़िलाफ़ विद्रोह है;
जो दिए की तरह जले,
वह जीवन-भर का प्यार है.