शुक्रवार, 10 जून 2016

२१७. ग़म के आंसू



ग़म में निकलते हैं आंसू,
ख़ुशी में भी निकलते हैं,
जिस हाल में भी निकलें,
राहत-भरे होते हैं आंसू.

ग़म के हों या ख़ुशी के हों आंसू 
वैसे तो एक जैसे होते हैं,
पर न जाने मुझे 
ऐसा क्यों महसूस होता है 
कि जो आंसू ग़म में निकलते हैं,
उनमें नमक थोड़ा ज़्यादा होता है.

4 टिप्‍पणियां:

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  2. गम के आँसुऔ में शायद नमक होता है.....जो जमाने ने जख्मों पर डाला होता है। एक वेहतरीन रचना । मुझे अच्छी लगी।

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  3. गहन अहसास...बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति

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  4. बहुत खूब ... कुछ तो फर्क होता ही है दोनों आंसुओं में ... गहरी आह भी तो होती है गम के आंसुओं में ....

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