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शुक्रवार, 12 मई 2017

२६०. बोल

बोल, किस बात का डर है तुझे,
जो तेरे पास है, उसे खोने का
या उसे, जो तेरा हो सकता है?

बोल, क्यों चुप है तू,
कौन सा ताला है तेरे मुंह पर,
प्यार का, डर का या लालच का?

बोल, किस दुविधा में है तू,
क्या है, जो तेरे ज़मीर से बढ़कर है,
क्या है, जो तेरी इज्ज़त से क़ीमती है?

बोल, क्या चाह है तेरे मन में,
क्या इतनी छोटी है तेरी चादर 
कि समा नहीं सकते उसमें तेरे पांव?

क्या हुआ तेरी ज़बान को?
देख, निकला जा रहा है वक़्त,
मुंह से नहीं, तो आँखों से ही बोल,
बोल, कुछ तो बोल.

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