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शुक्रवार, 24 फ़रवरी 2017

२४९. चले गए

बरसों से जो साथ थे, अचानक बिछड़ गए,
जाने कहाँ से आए थे, कहाँ चले गए.

आसां नहीं होता दिल की बात कह देना,
मैं सोचता ही रह गया,वे उठकर चले गए.

अरसे बाद लौटकर वे घर को आए हैं,
लौटना ही था, तो फिर किसलिए चले गए.

न जाने मेरी नज़रों में क्या दिखा उनको,
वे तमतमाए,उठे,महफ़िल से चले गए.

मत सोचो,क्या होगा,जब तुम नहीं होगे,
कितने यहाँ आए, कितने चले गए.

शनिवार, 18 फ़रवरी 2017

२४८.अच्छी पत्नी

अच्छी पत्नियाँ वे होती हैं,
जो अपने पतियों के 
पीछे-पीछे चलती हैं,
जैसा वे कहें, वैसा करती हैं,
उनकी पसंद का पकाती हैं,
घर में सब खा लेते हैं,
तब खाती हैं.

अच्छी पत्नियाँ वे होती हैं,
जिनके पति तय करते हैं 
कि उन्हें कहाँ जाना है,
किससे बात करना है,
कब जगना है,
कब सोना है.

अच्छी पत्नियाँ वे होती हैं,
जो डांट-फटकार 
यहाँ तक कि मार भी 
चुपचाप सह लेती हैं
और इस तरह मुस्कराती हैं,
जैसे कुछ हुआ ही न हो.

अच्छी पत्नी न इंसान होती है,
न देवी,
कठपुतली होना 
अच्छी पत्नी होने की 
पहली शर्त है.

शनिवार, 11 फ़रवरी 2017

२४७.पिता

पिता, कभी-कभी जी करता है 
कि कोई ज़ोर से डांटे,
पूछताछ करे,टोकाटाकी करे,
कहे कि आजकल तुम्हारे 
रंग-ढंग ठीक नहीं हैं.
घर से निकलूं तो कहे,
जल्दी वापस आ जाना,
देर से लौटूं तो कहे,
मेरी बात ही नहीं सुनते,
बिना कहे जाऊं तो पूछे,
कहाँ गए थे,
किसी के साथ जाऊं तो पूछे,
उसका नाम क्या है?

पिता, जब तुम पूछते थे,
तो सोचता था, क्यों पूछते हो,
अब तुम नहीं हो,
तो तरस गया हूँ,
उसी डांट-फटकार, टोका-टाकी,
पूछताछ के लिए.

पिता, तुम गए तो मैंने जाना
कि बड़ा होकर भी 
बच्चा होने का सुख 
आख़िर क्या होता है.

शनिवार, 4 फ़रवरी 2017

२४६. गाँव का स्टेशन

गाँव के लोग उठ जाते हैं 
मुंह अँधेरे,
पर गाँव का स्टेशन सोया रहता है.
उसे जल्दी नहीं उठने की,
उठ भी जाएगा तो करेगा क्या?
हांफते-हांफते 
दोपहर बाद पंहुचेगी 
गाँव में रुकनेवाली 
इकलौती पैसेंजर ट्रेन 
और फिर सन्नाटा.
कभी गाड़ी लेट हो जाती है 
या रद्द हो जाती है,
तो अकेलापन महसूस करता है 
गाँव का स्टेशन,
बहुत उदास हो जाता है 
गाँव का स्टेशन,
सोचता है कि अगर वह नहीं होता 
तो भी गाँव को 
शायद ही कोई फ़र्क पड़ता.