कविताएँ
बुधवार, 24 अप्रैल 2024
७६४.आँखों से बात
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बहुत दिन हुए, बालकनी में चलते हैं, बात करते हैं. ऐसे बात करते हैं कि मुंडेर पर बैठी चिड़िया बिना डरे बैठी रहे, कलियाँ रोक दें खिलना, सूख...
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शुक्रवार, 19 अप्रैल 2024
७६३. ब्रह्मपुत्र से
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ब्रह्मपुत्र, कल शाम तुम्हारे पानी में जो सूरज डूबा था, अब तक निकला ही नहीं. खोजो उसे, निकालो जल्दी से, कहीं दम न घुट जाए उसका. इतना भी ...
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रविवार, 14 अप्रैल 2024
७६२.पहाड़ों पर धुंध
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लम्बे-ऊंचे पेड़, जो कभी ढलान पर उगे थे, हमने काट दिए हैं, पहाड़ों के सीने में घुसकर हमने निकाल लिए हैं दबे हुए खनिज. जहाँ पगडंडियाँ भी...
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सोमवार, 8 अप्रैल 2024
७६१. ख़ामोश झील पर चांद
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पर्दे के पीछे तेरा रूप दमकता है, जैसे शाख़ों के पीछे आफ़ताब चमकता है. तेरे गालों पर झुकी हुई बालों की लट, जैसे कोई भंवरा फूल पर उतरता है. ...
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मंगलवार, 2 अप्रैल 2024
७६०.नरम-दिल पहाड़
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पतली घुमावदार पगडंडियाँ कभी ऊपर, कभी नीचे, कभी सामने, कभी ओझल, जैसे कोई नटखट बच्ची पहाड़ों की ढलान पर मस्त दौड़ रही हो. देवदार के बेशर...
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